चीन डोकलाम मुद्दे पर कारस्तानी दिखाने से बाज नहीं आ रहा। अब जबकि दोनो देश इस सीमा विवाद का कूटनीतिक निपटारा फिलहाल कर चुके हैं तब चीन के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर चुभने वाला बयान दिया है। यह बयान विदेश मंत्री वांग यी के भारत से लौटने के बाद वहां के विदेश मंत्रालय की तरफ से आया है। वांग 11 दिसंबर को भारत आये थे जहां उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से द्विपक्षीय मुलाकात हुई थी। वांग ने स्वराज और रूस के विदेश मंत्री के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक में हिस्सा लिया था। तब चीन की तरफ से मुलाकात पर कोई टिप्पणी नहीं की गई लेकिन अब उस पर सोच समझ कर बयान जारी किया गया है।
चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी इस बयान में कहा गया है कि, भारत और चीन की तरफ से रिश्ते को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है लेकिन अभी तक परिणाम असंतोषजनक रहे हैं। भारतीय सेना के डोंग लांग (डोकलााम) में अवैध तरीके से घुसने से द्विपक्षीय रिश्तों को गहरा आघात लगा है। इस मुद्दे को कूटनीतिक सहारे से सुलझा लिया गया है जिससे पता चलता है कि भारत चीन के रिश्ते परिपक्व होते हैं। हालांकि इससे सबक सीखने की जरुरत है कि ऐसा मामला फिर सामने नहीं आये।
वैसे इस बयान के उक्त पहले पैराग्राफ के बाद अन्य बातें आपत्तिजनक नहीं है। इसमें आम तौर पर भारत और चीन को आपसी रिश्तों को मजबूत करने के लिए और ज्यादा परिपक्वता दिखाने, एक दूसरे को विरोधी समझने के बजाये सहयोगी समझने जैसी बातें हैं। यह कहा गया है कि वांग यी ने भारतीय विदेश मंत्री को बताया कि दोनो देशों के रिश्ते बहुत ही गंभीर चरण से गुजर रहे हैं और यह बहुत जरुरी है कि आपसी समझ बूझ को बढ़ाने के लिए दोनो देशों के स्तर पर कोशिश होती रहे। भारत को यह भी सुझाव दिया गया है कि वह चीन के प्रति आशंका भाव को खत्म करे।
द्विपक्षीय रिश्तों के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान दे ताकि द्विपक्षीय रिश्तों में गर्मजोशी भरी जा सके।
सनद रहे कि चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से वांग यी की भारत यात्रा को लेकर जो बयान वेबसाइट पर दिए जा रहे हैं उनमें पिछले दो दिनों में दो बार बदलाव किये जा चुके हैं। वांग यी और सुषमा स्वराज की मुलाकात पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि, दोनो की बातचीत बेहद सकारात्मक रही। उन्होंने भारत की यह इच्छा जताई कि दोनो देशों के बीच बगैर किसी एजेंडा के बातचीत होनी चाहिए ताकि आपसी भरोसा बढ़ सके। साफ है कि भारत चीन के इस रवैये पर अभी कोई तीखी टिप्पणी करने से बच रहा है। सनद रहे कि जब डोकलाम विवाद सामने आया था तब भी भारत ने बेहद संयमित भाषा का इस्तेमाल किया था जबकि चीन की तरफ से लगातार आक्रामक बयान दिए जा रहे थे। भारत के इस रवैये का कई विदेशी सरकारों ने भी सराहना की है।