एतेरेय ब्राह्मण में लिखा है
कलि” शयानो भवति , संजिहानस्तु द्वापर: |
उतिष्ठन त्रेता भवति ,कृत स्पन्द्व्ते चरन ||
चरैवेति ,चरैवति
अर्थात जन मनुष्य सोया रहता है वह कलियुग में होता है | जब वह बैठ जाता है तब द्वापर में होता है जब उठ खड़ा होता है तब त्रेतायुग में तथा जब चलने लगता है तब वह सतयुग को प्राप्त करता है अत: चलते रहो ,चलते रहो | जीवन चलने का नाम है आगे बढने का नाम है | पर्यटन भी तो चलने का ,निरंतर आगे बढने का और नित्य नव अन्वेषण करने का नाम है अत: पर्यटन जीवन है पर्यटन ही मनुष्य का विकास है |
पर्यटन मनुष्य के विकास का पर्याय है उसकी क्षमता का मूल्याकंन करने तथा उसकी क्षमता को विकसित करने का साधन और माध्यम भी | केवल भौतिक नही अपितु मानसिक और आह्द्यात्मिक क्षमता का विकास है पर्यटन | अपनी भौतिक क्षमता को जानने के लिए अपने को जानना आवश्यक है और अपने को जानना है आध्यात्मिक अभ्युदय | इसके लिए आवश्यक है मानसिक क्षमता का विकास भी अत: भौतिक ,मानसिक तथा आध्यत्मिक तीनो तत्वों के विकास का मार्ग और साधन है पर्यटन |
पर्यटन अर्थात देश-देशांतर का भ्रमण सतयुग के तुल्य है क्योंकि चलना ही (कुछ करना ही) जीवन है रुकना मृत्यु है | भारतभूमि पर जहा का चप्पा चप्पा असीम प्राकृतिक सुषमा और सौन्दर्य ,भौगोलिक विशिष्टता तथा आध्यात्मिक उर्जा से भरपूर है पर्यटन जीवनी शक्ति का अनंत स्त्रोत है | भैतिकता की जड़ता से निकलना ही सही अर्थो में पर्यटन की अवधारणा को साकार करना है |
कई स्थलों अथवा क्षेत्रो को यहा देवभूमि से अभिहित किया जाता है | वास्तव में सारा भारत ही देवभूमि है | भारत भूमि पर पर्यटन का अर्थ मात्र धार्मिक तीर्थयात्रा करना अथवा किसी महंगे रिसोर्ट में छुट्टिया बिताना नही अपितु धर्म के मर्म को जान क्र शुद्ध धर्म पर्वत होना है | यहा पर्यटन का अर्थ है स्वयं में देवत्व की स्थापना करना | धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष इन चारो पुरुषार्थो में संतुलन स्थापित कर जीवन जीने की कला को विकसित करने का नाम पर्यटन है |
देश के चारो कोनो में स्तिथ आदि शंकराचार्यों द्वारा स्थापित चार मठधर्म देश को जोड़ते है | पर्यटन भी किसी मठ ,किसी धर्म से कम नही | मन्दिर ,मस्जिद ,गिरिजाघर ,गुरूद्वारे ,पीरो फकीरों की मजारे और दरगाहे सभी लोगो को एक सूत्र में पिरोते है | ऊँची ऊँची मीनारे ,विशाल दरवाजे ,शानदार महल और किले तथा अन्य स्मारक सभी दूर दूर से लोगो को आकर्षित करते है | धर्म दर्शन ,आध्यात्म ,पुरातत्व ,शिल्प और कलाए इन सबके माध्यम से पर्यटन ही तो जोड़ता है देश को | स्थानों को नही आत्माओं को जोड़ता है पर्यटन भारतभूमि पर |
यहा भारतभूमि पर हिमालय के सुरम्य परिवेश में आश्रमों में विदेशी आते है योग की शिक्षा प्राप्त करने ,योग साधना में पारंगत होने | भारतभूमि पर पर्यटन स्वयं में योग साधना है | यम, नियम ,आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान और समाधि महर्षि पतंजलि द्वारा पदत्त योग के ये आठ अंग है | बतलाइये इनमे से योग का कौन सा अंग है जो पर्यटन में सम्मिलित नही है ?
पर्यटन का प्रारम्भ होता है शारीरिक श्रम से | पैदल चलना हो या ट्रेकिंग ,शारीरिक श्रम के ही रूप में है जो योग में वर्णित आसन और प्राणायाम के अभ्यास के समान ही है | नैसर्गिक सौन्दर्य में ही नही ,मानव द्वारा निर्मित शिल्प और कलाओं में भी खो जाता है पर्यटक | भूख-प्यास भूलकर बीएस एकटक निहारता रह जाता है एक से बढ़ कर एक शाहकार को | भूल जाता है सफर की सारी पीड़ा और सारे दुःख तकलीफ |
धीरे धीरे पर्यटक प्रत्याहार ,धारणा और ध्यान की अवस्थाये से गुजर कर पहुच जाता है समाधि की अवस्था के निकट | समाधि की अवस्था के निकट पहुच कर सम्पूर्ण रूपांतरण की प्रक्रिया को प्राप्त कर लेता है पर्यटक | पर्यटन की नैतिक मान्यताओं का पोषण होता है यम और नियम से | इस प्रकार सम्पूर्ण योग ही तो है पर्यटन |
कम नही होती सफर की दुश्वारिया भी | बजट में असंतुलन होने पर भी कम परेशानी नही होती | स्वास्थ्य बिगड़ने ,चोट लगने और आर्थिक नुकसान होने की भी पुरी पुरी सम्भावना बनी रहती है | इन सब विषम परिस्थितयो के बीच परदेस में धैर्य का विकास करता है पर्यटन | धैर्य अथवा धृति धर्म का प्रमुख तत्व या लक्षण है अत: जीवन में वास्तविक धर्म को स्थापित करता है पर्यटन | धर्म के मूल स्वरूप या तत्व से मनुष्य को जोड़ता है पर्यटन |