सचिन-सचिन , सचिन-सचिन के नारों की यह गूंज स्टेडियम में दुनिया भर के लोग सैकड़ों बार देख-सुन चुके हैं, महसूस कर चुके हैं। सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स कोई रेगुलर फ़िल्म नहीं है, ना ही इसमें सिनेमाई ग्रामर का कोई इस्तेमाल है। बावजूद इसके पूरी दुनिया इस डॉक्यूफीचर का इंतज़ार बेसब्री से कर रही थी।
इसे सहूलियत के लिए फ़िल्म कहना शुरू कर रहा हूं क्योंकि इसमें फ़िल्म के 100% गुण हैं। मैंने सही मायने में अपने पूरे करियर में पहली थ्रिलर फ़िल्म देखी है जिसमें इमोशन है, देशभक्ति का जज़्बा है। ये जानना वाकई एक अनुभव है कि किसी मैच में हारने के बाद सचिन को कैसा लगा? किसी बॉलर का सामने करने पर उन्हें कैसा लगा? वर्ल्डकप हारने पर फैंस का गुस्सा देख कर उन्हें क्या महसूस हुआ? अपने परिवार में वो कैसे हैं? उनके पिता की मौत के तुरंत बाद इंग्लैंड के खिलाफ मैच खेलने के लिए पहुंचते हुए उनके दिल पर क्या बीती? यह फ़िल्म ऐसी अनेक घटनाएं जो इस महान खिलाड़ी को महान बनाती है उनसे रूबरू होने का एक मौका है। इसे गंवाना आप बिल्कुल अफोर्ड नहीं कर सकते।
सचिन को सिनेमेटिक तराज़ू में तौल कर उसका क्रिटिसिज्म करना बेमानी है। ये फ़िल्म हर गार्डियन को अपने बच्चों को दिखानी चाहिए ताकि वो सीख सकें कि एक गोल हासिल करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। साथ ही मां-बाप भी जान सकें कि सचिन जैसी संतान बनाने के लिए ज़िंदगी को कैसे जीया जाना चाहिये।
सचिन आप सभी को जरूर देखना चाहिए। ये मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के कई पहलू सीखने का माद्दा रखती है। जब फ़िल्म ख़त्म होती है तो आंखों में आंसू दिल में उत्साह और मन में एक ही चीज़ गूंजती है- सचिन, सचिन!